हुआ न मुझ से कोई हम-कलाम गर्दिश में धुआँ हुए हैं मिरे सुब्ह-ओ-शाम गर्दिश में ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ हर ज़माना-ए-वहशत उतर चुके हैं सभी ख़ुश-ख़िराम गर्दिश में मैं भागता हूँ सर-ए-दश्त-ए-कर्बला और फिर इज़ाफ़ा करते हैं आ कर इमाम गर्दिश में मिरी तलब मिरी रफ़्तार के मुनाफ़ी है मैं ख़ास शख़्स हूँ रहता हूँ आम गर्दिश में पनप रहा है कहीं दिल में शौक़-ए-दीद-ओ-शुनीद धड़क रहे हैं ज़माने मुदाम गर्दिश में बदल बदल के कई हाथ हश्र उठाता है बना रहा है कोई राह-ए-जाम गर्दिश में ख़ुदा का शुक्र अदा करता हूँ मैं सुब्ह-ओ-मसा लबों पे रख के दरूद-ओ-सलाम गर्दिश में बदलता रहता है चलने से मय-कदे का निज़ाम कि चल-चलाव से रहता है जाम गर्दिश में रह-ए-फ़ना पे क़दम रख के फँस न जाऊँ कहीं लगा रखा है ख़ुदाई ने दाम गर्दिश में रुका हुआ हूँ मैं इक गर्दिशी जज़ीरे पर गुज़र रहे हैं मिरे सुब्ह-ओ-शाम गर्दिश में रुके हुए हैं सभी दोस्त क्यों 'फ़िदा' मिरे मिलेगा उन को यक़ीनन दवाम गर्दिश में