हुए न आँधी के आगे जो सर-ख़मीदा शजर सो लग रहे हैं हमें अपने हम-'अक़ीदा शजर बिछड़ के तुझ से बड़े ज़ब्त से मैं चल तो पड़ा मगर रुला गए रस्ते के आबदीदा शजर ऐ बेलो तुम को नहीं ख़ौफ़ तुम तो पाँव में हो उखाड़े जाएँगे ख़ुद्दार चीदा चीदा शजर सजा लिए नए गमले अलग अलग सब ने अकेला रह गया गुलशन में सिन-रसीदा शजर हमेशा शहर से धुतकारे जाने वालों को गले लगाते हैं जंगल के बरगुज़ीदा शजर हमारे ज़िक्र पे कहते हैं यूँ परिंदे अब 'नबील' कौन वही ना ख़िज़ाँ-रसीदा शजर