हुजरा-ए-ज़ात से बाहर तो निकल कर देखो तुम किसी दूसरे पैकर में भी ढल कर देखो क्या अजब तुम को ही ये हम-सफ़री रास आ जाए दो क़दम ही सही तुम साथ तो चल कर देखो हाँ ये दस्तार-ए-फ़ज़ीलत भी क़बा-ए-ज़र भी ख़ुद को देखो तो ये पोशाक बदल कर देखो मौसम-ए-हिज्र कोई रुत है न कुछ आब-ओ-हवा इक तक़ाज़ा है कि फिर घर से निकल कर देखो मात हो जाए मगर हौसला-ए-दिल के लिए आख़िरी चाल जो बाक़ी है वो चल कर देखो