इस कड़ी धूप में साया कर के तू कहाँ है मुझे तन्हा कर के मैं तो अर्ज़ां था ख़ुदा की मानिंद कौन गुज़रा मिरा सौदा कर के तीरगी टूट पड़ी है मुझ पर मैं पशीमाँ हूँ उजाला कर के ले गया छीन के आँखें मेरी मुझ से क्यूँ वादा-ए-फ़र्दा कर के लौ इरादों की बढ़ा दी शब ने दिन गया जब मुझे पसपा कर के काश ये आईना-ए-हिज्र-ओ-विसाल टूट जाए मुझे अंधा कर के हर तरफ़ सच की दुहाई है 'नसीर' शेर लिखते रहो सच्चा कर के