इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच आग सी कुछ लग गई है सीना-ए-बिरयाँ के बीच अहल-ए-मानी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को हम ने पाया है ख़ुदा को सूरत-ए-इंसाँ के बीच इस सबब मैं जंग शाने से करूँ हूँ बार बार दिल हुआ है गुम मिरा उस काकुल-ए-पेचाँ के बीच ज़ुल्फ़ ओ चश्म ओ ख़ाल ओ ख़त चारों हैं दुश्मन दीन के हक़ रक्खे ईमाँ सलामत ऐसे कुफ़्रिस्ताँ के बीच नक़्द-ए-दिल खोया है हम ने जान कर इस राह में फ़िल-हक़ीक़त आशिक़ों को सूद है नुक़साँ के बीच गर अदू मेरी बदी करता है ख़ास ओ आम में मैं उसे रुस्वा करूँगा बाँध कर दीवाँ के बीच रात दिन जारी है आलम में मिरा फ़ैज़-ए-सुख़न गो कि हूँ मुहताज पर 'हातिम' हूँ हिन्दोस्ताँ के बीच