जान-ए-जाँ कहोगे नाँ अश्क पोंछ लोगे नाँ ईद पर मिलोगे नाँ इन उदास आँखों में ख़्वाब तुम भरोगे नाँ ईद पर मिलोगे नाँ वक़्त किस तरह गुज़रा चाँद किस तरह उतरा फुर्क़तों के मौसम में इन सभी सवालों के तुम जवाब दोगे नाँ ईद पर मिलोगे नाँ फ़ासले जो आए हैं कितने ग़म उठाए हैं ग़ैर मुस्कुराए हैं हाथ थाम कर मेरे सब गिले सुनोगे नाँ ईद पर मिलोगे नाँ दिल में वहम पलता है जैसे ख़्वाब जलता है दिल कहाँ सँभलता है जाँ यक़ीं दिलाओ तुम मेरे ही रहोगे नाँ ईद पर मिलोगे नाँ तन्हा चाँद से मुझ को बे-बहा मोहब्बत है हाँ मिलन की हसरत है चाँद-रात को 'नय्यर' चाँद तुम बनोगे नाँ ईद पर मिलोगे नाँ