जान निकलेगी मिरी जान बड़ी मुश्किल से होगी मुश्किल मिरी आसान बड़ी मुश्किल से वो मिरे घर रहे मेहमान बड़ी मुश्किल से रात निकले मिरे अरमान बड़ी मुश्किल से आँखें तलवों से मलीं ले के क़दम आँखों पर राह पर आए निगहबान बड़ी मुश्किल से था बहुत उन को गिलौरी का उठाना मुश्किल दस्त-ए-नाज़ुक से दिया पान बड़ी मुश्किल से बढ़ के दरबाँ ने लिया आज भी दामन मेरा कल छुड़ाया था गरेबान बड़ी मुश्किल से सोहबत-ए-बद से बचाने का बताया सब हाल आज माने मिरे एहसान बड़ी मुश्किल से ज़ुल्म को लुत्फ़ से ता'बीर करेंगे दम-ए-हश्र जौर से होंगे पशेमान बड़ी मुश्किल से कोई काफ़िर हो जो कल जाए सू-ए-दैर-ए-बुताँ कि बचा आज ही ईमान बड़ी मुश्किल से न रहे मैं ने कलेजे में जो रखना चाहा दिल में ठहरे तिरे पैकान बड़ी मुश्किल से दूर अभी मंज़िल-ए-मक़्सूद है काले कोसों कुछ हुए क़त्अ बयाबान बड़ी मुश्किल से मान लेते हैं वो मुश्किल से भी मुश्किल कोई बात कभी आसाँ से भी आसान बड़ी मुश्किल से मय बहुत रुक के मिरे हल्क़ से उतरे दम-ए-नज़अ' अभी मुश्किल हुई आसान बड़ी मुश्किल से बे-शब-ए-वस्ल ये अंदाज़ निकलते ही नहीं ज़ुल्फ़ होती है परेशान बड़ी मुश्किल से धार तलवार की थी जादा-ए-बारीक न था है हुआ हश्र का मैदान बड़ी मुश्किल से रहते हैं ऐसे ही इंसान फ़रिश्ते बन कर आदमी बनते हैं इंसान बड़ी मुश्किल से दिल-ए-बिस्मिल में कुछ इस तरह हुए थे पैवस्त टूट कर निकले हैं पैकान बड़ी मुश्किल से यही अंदाज़ यही वज़्अ जो रक्खोगे 'रियाज़' लोग समझेंगे मुसलमान बड़ी मुश्किल से