जब भी कश्ती के मुक़ाबिल भँवर आता है कोई जगमगाता सर-ए-साहिल नज़र आता है कोई बे-रुख़ी उस की दिलाती है जहाँ का एहसास लिए दुनिया की ख़बर बे-ख़बर आता है कोई शिद्दत-ए-यास में चुपके से उजालों की तरह मेरे तारीक ख़यालों में दर आता है कोई तन-ए-तन्हा तो सफ़र दिल पे गिराँ गुज़रेगा मुंतज़िर हूँ कि मिरे साथ अगर आता है कोई डूब जाता है जुदाई की शफ़क़ में दिन को उफ़ुक़-ए-ख़्वाब से शब को उभर आता है कोई अश्क पीता हूँ मैं तिरयाक़ समझ कर जिस वक़्त ज़हर बन कर रग-ए-जाँ में उतर आता है कोई हिज्र सामाँ है रवाँ सू-ए-शब-ए-वस्ल 'शहाब' धूप ओढ़े हुए ज़ेर-ए-शजर आता है कोई