जब तिरा इल्तिफ़ात हो जाए क़ैद-ए-ग़म से नजात हो जाए तू पिलाए जो अपने हाथों से ज़हर आब-ए-हयात हो जाए जल्वा-ए-रुख़ से हो सहर पैदा ज़ुल्फ़ बिखरे तो रात हो जाए ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो तुझ को सुनूँ मुस्कुराहट से बात हो जाए दौलत-ए-हुस्न है हया भी करो यूँ अदा-ए-ज़कात हो जाए तुम अगर मेरे ख़्वाब में आओ शब मिरी शब-बरात हो जाए