जज़ीरे की तरह मेरी निशानी किस लिए है मिरे चारों तरफ़ पानी ही पानी किस लिए है मैं अक्सर सोचता हूँ दिल की गहराई में जा कर ज़मीं पर एक चादर आसमानी किस लिए है ब-ज़ाहिर पुर-सुकूँ और दिल की हर इक रग सलामत तो ज़ेर-ए-सत्ह-ए-दरिया इक रवानी किस लिए है मैं टूटा हूँ तो अपनी किर्चियाँ भी जोड़ लूँगा प चेहरे पर मिरे ये शादमानी किस लिए है ये दिल बे-हौसला दिल मेरे कहने में नहीं जब तो अपने दिल की मैं ने बात मानी किस लिए है करें लहजे बदल कर गुफ़्तुगू इक दूसरे से हमारे दरमियाँ ये बे-ज़बानी किस लिए है सभी किरदार अपना काम पूरा कर चुके हैं तो आख़िर ना-मुकम्मल ये कहानी किस लिए है