ज़माने को ख़ुद से न अंजान रख कोई मुनफ़रिद अपनी पहचान रख महक जाए ख़ुशबू से सारा जहाँ सजा कर मोहब्बत का गुल-दान रख जो है कामयाबी की चाहत तुझे नज़र अपनी मंज़िल पे हर आन रख तिरा क्या बिगाड़ेगा ज़ालिम जहाँ तू हिम्मत की सीने में चट्टान रख रग-ए-जाँ है बीवी अगरचे तिरी तू माँ-बाप का भी मगर ध्यान रख दिखाएगा तुझ को ख़ुदा एक दिन मदीने का दिल में तू अरमान रख फिर एहसास होगा तुझे 'दर्द' का दर-ए-दिल पे ख़ूँ-रंग दरबान रख