जाने क्यूँ प्यास की चौखट पे वो आ बैठा है मैं ने हर गाम नया अब्र जिसे बख़्शा है एक लम्हे को भी मुड़ के नहीं देखा उस ने जाने वाले को बहुत दूर तलक देखा है ख़ाक से पाक लिबादों की महक आती है क़ाफ़िला दश्त के आँगन में खिला किस का है मो'जिज़ा उस को ही कहती है ये दुनिया शायद मुझ को उम्मीद न थी पर वो पलट आया है इक नज़र मैं ने जिसे प्यार से देखा 'नोमान' वो परिंदा मिरी दहलीज़ पे आ बैठा है