जो कारवाँ में है शामिल न रहगुज़ार में है वो शख़्स मेरी तमन्नाओं के दयार में है सहर-शनास अंधेरे कि शब-गज़ीदा सहर न वो निगाह में अपनी न ये शुमार में है ये क्या ख़लिश है कि लौ दे रही है जज़्बों को न जाने कौन सा शोला मेरे शरार में है बसी है सूखे गुलाबों की बात साँसों में कोई ख़याल किसी याद के हिसार में है रची हुई है फ़ज़ाओं में किस के ख़ून की बू ये कैसा जश्न-ए-बहाराँ मिरे दयार में है न जाने कौन से झोंके से जल-बुझूँ 'उज़मा' मिरा वजूद हवाओं के कार-ज़ार में है