कभी मिलते थे वो हम से ज़माना याद आता है बदल कर वज़्अ छुप कर शब को आना याद आता है वो बातें भोली भोली और वो शोख़ी नाज़ ओ ग़म्ज़ा की वो हँस हँस कर तिरा मुझ को रुलाना याद आता है गले में डाल कर बाँहें वो लब से लब मिला देना फिर अपने हाथ से साग़र पिलाना याद आता है बदलना करवट और तकिया मिरे पहलू में रख देना वो सोना आप और मेरा जगाना याद आता है वो सीधी उल्टी इक इक मुँह में सौ सौ मुझ को कह जाना दम-ए-बोसा वो तेरा रूठ जाना याद आता है तसल्ली को दिल-ए-बेताब की मेरी दम-ए-रुख़्सत नई क़समें वो झूटी झूटी खाना याद आता है वो रश्क-ए-ग़ैर पर रो रो के हिचकी मेरी बंध जाना फ़रेबों से वो तेरा शक मिटाना याद आता है वो मेरा चौंक चौंक उठना सहर के ग़म से और तेरा लगा कर अपने सीना से सुलाना याद आता है कभी कुछ कह के वो मुझ को रुलाना उस सितमगर का फिर आँखें नीची कर के मुस्कुराना याद आता है