काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए तशरीफ़ लाइएगा मुलाक़ात के लिए दुनिया में क्या किसी से किसी को ग़रज़ नहीं हर कोई जी रहा है फ़क़त ज़ात के लिए हम बारगाह-ए-नाज़ में उस बे-नियाज़ की पैदा किए गए हैं शिकायात के लिए हैं पत्थरों की ज़द पे तुम्हारी गली में हम क्या आए थे यहाँ इसी बरसात के लिए अपनी तरफ़ से कुछ भी उन्हों ने नहीं कहा हम ने जवाब सिर्फ़ सवालात के लिए रौशन करो न शाम से पहले चराग़-ए-जाम दिन के लिए ये चीज़ है या रात के लिए महँगाई राह-ए-रास्त पे ले आई खींच कर बचती नहीं रक़म बुरी आदात के लिए करने के काम क्यूँ नहीं करते 'शुऊर' तुम क्या ज़िंदगी मिली है ख़ुराफ़ात के लिए