कह दिया था वफ़ा-शि’आर उसे अब है मेरा ही इंतिज़ार उसे आसमाँ पर चढ़ा दिया था कल अब ज़मीं पर भी तो उतार उसे अपने ख़ुद-साख़्ता उसूलों से मिल गया कुछ दिनों क़रार उसे सब ने नज़रें बचाईं मौक़ा दिया कहते हैं अब गुनाहगार उसे लोग कहने लगे हैं दीवाना मिल गई है रह-ए-फ़रार उसे कल वो देगा जवाब किस किस को नाम ले कर तू मत पुकार उसे देखता ही नहीं किसी की तरफ़ जाने किस का है इंतिज़ार उसे बंद आँखें किए वो हँसता रहा हम जगाते रहे 'वक़ार' उसे