कहीं राज़-ए-दिल अब अयाँ हो न जाए निगाह-ए-मोहब्बत ज़बाँ हो न जाए वो कुछ मेहरबाँ से नज़र आ रहे हैं कहीं वक़्त ना-मेहरबाँ हो न जाए छुपाता तो हूँ दिल की हालत को लेकिन किसी की नज़र राज़दाँ हो न जाए कोई पुर्सिश-ए-हाल को आ रहा है ग़म-ए-आरज़ू फिर जवाँ हो न जाए ज़माने में अब मेरे चर्चे हैं 'मुज़्तर' मिरी ज़िंदगी दास्ताँ हो न जाए