कहीं तो प्यास की शिद्दत ने मारा कहीं इस दश्त में वहशत ने मारा पड़ी आदत किसी को चाहने की मुझे मेरी इसी आदत ने मारा वो जिस को आसमानों की तलब थी उसे घर की शिकस्ता छत ने मारा नज़र में हमला-आवर की न थे हम हमें तो सैद की सोहबत ने मारा वो जिन के हौसलों में दम नहीं है वो सोचेंगे उन्हें क़िस्मत ने मारा कोई सूरत पे उस की मर-मिटा और किसी को यार की सीरत ने मारा बिला तफ़तीश रब माना किसी को हमें 'अफ़रंग' यूँ ग़फ़लत ने मारा