कहती हूँ सच कि झूट की आदत नहीं मुझे इस दौर में किसी से अदावत नहीं मुझे सब से वफ़ा ख़ुलूस मोहब्बत है ज़िंदगी कोहना रिवायतों से बग़ावत नहीं मुझे सर आँखों पर बिठाती हूँ मेहमान कोई हो धरती पे रहने वालों से नफ़रत नहीं मुझे रिश्तों का एहतिराम है मेरी निगाह में सरताबियों से उस की शिकायत नहीं मुझे किरदार में तलाश न कीजे कोई शिकन अपने किसी अमल से नदामत नहीं मुझे ग़म तो ये है कि तू ने भी पूछा न आ के हाल अहल-ए-सितम से कोई शिकायत नहीं मुझे