कौन याँ साथ लिए ताज-ओ-सरीर आया है याँ तो जो आया है पहले सो फ़क़ीर आया है इश्क़ लाया है फ़क़त एक ही सीने की सिपर हुस्न बाँधे हुए सौ तरकश-ओ-तीर आया है कल किसी शख़्स ने उस शोख़ से जा कर ये कहा आज दर पर तिरे इक आशिक़-ए-पीर आया है पुश्त ख़म-कर्दा असा हाथ में गर्दन हिलती ज़ोफ़-ए-पीरी से निहायत ही हक़ीर आया है सुन के ये शक्ल-ओ-शबाहत तेरी उस शोख़ ने आह वहीं मा'लूम क्या ये कि 'नज़ीर' आया है