ख़ाक में लिपटी कहानी और है रंग लेकिन आसमानी और है कल तलक वो बाँटती ख़ुश्बू रही अब हवा की छेड़-ख़ानी और है धूप के सहरा में चल कर देखना आबलों की शादमानी और है चींटियों से फिर मिरा वा'दा हुआ एक कोशिश आज़मानी और है रात के घर में बड़ा कोहराम था सुब्ह की अब बे-ज़बानी और है तितलियों को थी सबा की जुस्तुजू गुलिस्ताँ में हुक्मरानी और है कोंपलें इज़्न-ए-सफ़र की मुंतज़िर ज़र्द पत्तों में कहानी और है मेहरबाँ फूलों पे लगती थी हवा बहते पानी की रवानी और है हाँ नदामत तुझ को होनी चाहिए हैफ़ 'जाफ़र' पानी पानी और है