ख़ुदा की शर्म न कुछ एहतिराम मस्जिद का लगा हुआ है दुकानों पे नाम मस्जिद का ब-हुक्म-ए-इश्क़ झुका उस के सामने वर्ना वो देवी और मैं बेटा इमाम मस्जिद का ये ख़ून थूकती मख़्लूक़ उसी का कुनबा है समझ लिया जिसे तुम ने तमाम मस्जिद का अजीब क़हर है मिम्बर पे तंज़ करते हैं वो लोग मुँह भी है जिन पर हराम मस्जिद का हक़ीक़तन तो 'ज़ुबैर' आगे मा'बद-ए-दिल के जो कोई समझे तो कम है मक़ाम मस्जिद का