किसी से रब्त नहीं है किसी से प्यार मुझे न जाने रहता है फिर किस का इंतिज़ार मुझे हर एक साँस मिरी उम्र को घटाती है नफ़स का तार है गोया कफ़न का तार मुझे मिरी बहार को मौसम का इंतिज़ार नहीं कोई जो हँस के मिला मिल गई बहार मुझे न बे-क़रार हो तू मेरी बे-क़रारी पर तड़प तड़प के ख़ुद आ जाएगा क़रार मुझे ये दिल का आइना अब तोड़ने के क़ाबिल है दिखाई देता नहीं उस में रू-ए-यार मुझे किसी के हुस्न की मैं ने बहार देखी है चमन के फूल दिखाते हैं क्या बहार मुझे ये ख़ुद-फ़रेबी है मेरी कि ख़ुद-फ़रामोशी न आने वाले का रहता है इंतिज़ार मुझे मिरे वजूद से हरकत तो है ज़माने में अगरचे मौज की सूरत नहीं क़रार मुझे मिरे चमन ही से वाबस्तगी है दोनों की अज़ीज़ क्यूँ न हों फूलों के साथ ख़ार मुझे 'जिगर' के ख़ून से आँखों में सुर्ख़ डोरे हैं समझ रहा है ज़माना शराब-ख़्वार मुझे