क्यूँ ख़फ़ा तू है क्या कहा मैं ने मर कहा तू ने मर्हबा मैं ने क्यूँ सुराही-ए-मय को दे पटका तू ने तोड़ा या बेवफ़ा मैं ने ना-तवानी में ये तवानाई दिल को तुझ से उठा दिया मैं ने दे के ये तुझ को ये लिया कि दिया गौहर-ए-बे-बहा लिया मैं ने क्यूँ ख़ुम-ए-मय को मोहतसिब तोड़ा क्या किया मैं ने क्या किया मैं ने क्यूँ न रुक रुक के आए दम मेरा तुझ को देखा रुका रुका मैं ने गुल हज़ारों में शम्अ'-ए-ऐश 'एहसाँ' जैसे उस गुल को दिल दिया मैं ने