क्यों ले आए सर-ए-बाज़ार सुनो ऐ लोगो मैं न फ़नकार न शहकार सुनो ऐ लोगो टूटते हर्फ़ों का नौहा हूँ लबों पर चुन लो इक सदा का हूँ तलबगार सुनो ऐ लोगो हर त'आरुफ़ पे नहीं झुकती निगाह-ए-तस्लीम आँख होती है समझदार सुनो ऐ लोगो इक सियह-बख़्त चमक कर जहाँ बुझ जाएगा कोई हो जाएगा बेदार सुनो ऐ लोगो मैं कि ख़ुश हूँ मुझे दूरी का न एहसास दिलाओ क्यों उठाते हो ये दीवार सुनो ऐ लोगो सूखे ज़ख़्मों के चटकने की सदा भी अनमोल दिल से बढ़ कर नहीं फ़नकार सुनो ए लोगो