ले के इस घाट से उस घाट गई मेरा वजूद फ़िक्र दीमक की तरह चाट गई मेरा वजूद मेरी बर्बादी में इक शाख़ भी शामिल थी मिरी ख़ुद कुल्हाड़ी तो नहीं काट गई मेरा वजूद अपने मेआ'र का भी दाम न मिल पाया मुझे ज़िंदगी ले के कई हाट गई मेरा वजूद मैं सिकंदर था मगर आख़िरी मंज़िल की तरफ़ ले के इक टूटी हुई खाट गई मेरा वजूद 'फ़ैज़' जिस मिट्टी ने तरतीब दिया था मुझ को एक दिन मिट्टी वही पाट गई मेरा वजूद