लुत्फ़-ए-रंगीनी-ए-हयात नहीं ग़म नहीं जब तो काएनात नहीं जिस को निस्बत है आप के दर से उस को एहसास-ए-मुश्किलात नहीं जो नवेद-ए-हयात थी ऐ दिल उन की नज़रों में अब वो बात नहीं और क्या हैं ये हुस्न के जल्वे इश्क़ के गर तसर्रुफ़ात नहीं फिर है क्या राज़-ए-काएनात ऐ दोस्त ग़म अगर राज़-ए-काएनात नहीं वो न आएँगे शाम-ए-ग़म 'सादिक़' मेरे ऐसे तसव्वुरात नहीं