मद्धम हुई तो और निखरती चली गई ज़िंदा है एक याद जो मरती चली गई थी ज़िंदगी की मिस्ल शब-ए-हिज्र दोस्तो और ज़िंदगी की मिस्ल गुज़रती चली गई हम से यहाँ तो कुछ भी समेटा न जा सका हम से हर एक चीज़ बिखरती चली गई आए थे चंद ज़ख़्म गुज़र-गाह-ए-वक़्त पर गुज़री हवा-ए-वक़्त तो भरती चली गई इक अश्क क़हक़हों से गुज़रता चला गया इक चीख़ ख़ामुशी में उतरती चली गई हर रंग एक रंग से हम-रंग हो गया तस्वीर ज़िंदगी की उभरती चली गई