मैं कैसे मान लूँ कि इश्क़ बस इक बार होता है तुझे जितनी दफ़ा देखूँ मुझे हर बार होता है फ़क़त कटने को यूँ भी कट रही है ज़िंदगी लेकिन वही है ज़िंदगी जिस पल तिरा दीदार होता है तुझे पाने की हसरत और डर ना-कामियाबी का इन्हीं दो तीन बातों से ये दिल दो चार होता है अगर है इश्क़ सच्चा तो निगाहों से बयाँ होगा ज़बाँ से बोलना भी क्या कोई इज़हार होता है किनारे बैठ कर के कोई भी मंज़िल नहीं पाता जो टकराता है लहरों से वो दरिया पार होता है