मातम-कदा बना है गुलिस्ताँ तिरे बग़ैर By Ghazal << ऐसे में रोज़ रोज़ कोई ढूँ... आँधी में बिसात उलट गई है >> मातम-कदा बना है गुलिस्ताँ तिरे बग़ैर हर गुल हुआ है चाक-गरेबाँ तिरे बग़ैर लम्हात-ए-पुर-सुकून कहाँ और मैं कहाँ बिखरा पड़ा है होश का सामाँ तिरे बग़ैर Share on: