मेरा लहजा बड़ा दिल-गीर हुआ करता है दिल पे लग जाए तो ज़ंजीर हुआ करता है शेर में कुछ भी कहें आप मगर सहरा तो आज भी क़ैस की जागीर हुआ करता है बात तो तब थी नज़र भी न उठानी पड़ती तेग़ उठाने से कोई वीर हुआ करता है अब मैं इस चाक की गर्दिश पे नहीं देता ध्यान कुछ न कुछ रोज़ ही ता'मीर हुआ करता है कौन आशोब-ए-शब-ओ-रोज़ में सुनता है ग़ज़ल किस लिए शहर में दिल 'मीर' हुआ करता है