मुदाम चलना है मुश्किल तो मेरे साथ न चल तुझे है हाजत-ए-महमिल तो मेरे साथ न चल सफ़र ही जिस की है मंज़िल मैं वो मुसाफ़िर हूँ सफ़र का चाहे तू हासिल तो मेरे साथ न चल बहुत अज़ीज़ है मुझ को मिरा अधूरा-पन तुझे है होना मुकम्मल तो मेरे साथ न चल मैं तोड़ आया हूँ बंधन सभी रिवाजों के तू गर है पा-ब-सलासिल तो मेरे साथ न चल नहीं पसंद ज़माने की दौड़-भाग मुझे तू गर है दौड़ में शामिल तो मेरे साथ न चल मिली है आँखें तो लाज़िम नहीं कि दिल भी मिलें मिले न दिल से अगर दिल तो मेरे साथ न चल तिरी नज़र में जहालत है सादगी शायद नहीं मैं साथ के क़ाबिल तो मेरे साथ न चल