मुँह पे खाता है ये इस तरह से तलवार कि बस दिल मिरा इश्क़ में ऐसा है जिगर-दार कि बस नज़्अ' में देख मुझे यार झिजक कर बोला क्या बुरी तरह से मरता है ये बीमार कि बस आप को बेच के यूसुफ़ ने ज़ुलेख़ा को लिया क्या ख़रीदार ने पाया है ख़रीदार कि बस इस झड़ी सेती कहीं गिर न पड़े बाम-ए-फ़लक इस तरह रोते हैं तुझ बिन दर-ओ-दीवार कि बस इश्क़ के दार-ए-शिफ़ा में मुझे ले चल तू 'यक़ीं' कि तबीबों ने दिया इस क़दर आज़ार कि बस