मुझ को इस तौर तुझ को पाना है जैसे तू हुस्न का ख़ज़ाना है पहले ज़िद थी के छूना है उस को अब ये ज़िद है कि उस को पाना है उस के होंठों को पढ़ रहा हूँ मैं जिस के होंटों तलक ही जाना है आ गया हूँ मैं तेरे होंटों तक तुझ को बाहोँ तलक ही आना है तेरी गर्दन के पीछे तिल है जो उस को होंटों से बस लगाना है उस की शादी है ग़ैर से 'आकिब' उस को घर से उठा के लाना है