मुझ से वाक़िफ़ तो मिरे जिस्म का साया भी न था कैसे हो जाता तुम्हारा मैं ख़ुद अपना भी न था जितना मायूस है वो शख़्स बिछड़ कर मुझ से उतनी शिद्दत से तो मैं ने उसे चाहा भी न था चंद लम्हों की रिफ़ाक़त ही बहुत थी ऐ दोस्त इस से बढ़ कर तो कोई और तक़ाज़ा भी न था जैसे इल्ज़ाम लगाए हैं मिरे सर उस ने ऐसी नज़रों से तो मैं ने उसे देखा भी न था तू भी ग़ैरों का सा बरताव करेगा मुझ से मैं ने ऐसा तो किसी हाल में सोचा भी न था