मुल्क-ओ-मज़हब न ज़बाँ का कोई झगड़ा रखिए आप इंसाँ हैं तो इंसान से रिश्ता रखिए बात करते हुए महफ़िल में सलीक़ा रखिए अपने अस्लाफ़ का कुछ तौर तरीक़ा रखिए ग़म की तारीकी का एहसास न होने पाए अपने चेहरे पे तबस्सुम का उजाला रखिए अपने शाने से मिरा हाथ झटक देते हैं उन के आगे जो कभी अर्ज़-ए-तमन्ना रखिए आसमाँ ज़ेर-ए-क़दम रखिए ज़मीं पर रह कर इश्क़-ओ-इख़्लास का अंदाज़ निराला रखिए साथ देता है यहाँ कौन किसी का 'साहिल' हौसला अपना हर इक गाम पे बाला रखिए