न तो हम बहर से वाक़िफ़ न सुख़न जानते हैं कैसे दें लफ़्ज़ों को तरतीब ये फ़न जानते हैं वो किसी तौर भी तुझ को न लगाएँगे गले ऐ ख़ुशी जो भी तिरा चाल-चलन जानते हैं दिल के मंदिर में हैं दो एक पुजारी ऐसे जो न पूजा न इबादत न भजन जानते हैं इस लिए थाम के रक्खा है जुनूँ का दामन ऐ ख़िरद हम तिरा दीवालिया-पन जानते हैं जो मोहब्बत के हैं अल्फ़ाज़ मिरे होंटों पर वो तअ'स्सुब का तिरे चीर-हरन जानते हैं पाँव फैलाते हैं इतना कि है जितनी चादर अपनी औक़ात है क्या ख़ूब अपन जानते हैं