न और आग की फ़स्लें उगाओ धरती पर समुंदरों के ग़ुलामो अब आओ धरती पर हमारे हाथों ने कब और क्यों बनाए हैं उजाड़ क़ब्रों की मानिंद घाव धरती पर मैं ख़ुद ही आऊँगा नीलाहटों के देस में तुम मिरी तलब में भटकने न आओ धरती पर किसी तरह तो हों ताराज ख़्वाहिशों के मकाँ बहाओ आग के दरिया बहाओ धरती पर ज़माना बीत गया माँ की गोद कहते हुए नई नई कोई तोहमत लगाओ धरती पर