न हीरे जवाहिर न ज़र बख़्श मौला मुझे बस ग़ज़ल का हुनर बख़्श मौला सुख़न की पिरोऊँ मैं तस्बीह जिन से वो लफ़्ज़ों के ला'ल-ओ-गुहर बख़्श मौला फ़लक से भी ऊँची भरें ये उड़ानें ख़यालों को मेरे वो पर बख़्श मौला पिघल जाएँ पत्थर भी सुन गीत मेरे क़लम को मिरे वो असर बख़्श मौला नहीं मुझ को मंज़िल की हरगिज़ तमन्ना मुझे बस मुसलसल सफ़र बख़्श मौला समेटे जो दर्द-ए-जहाँ अपने अन्दर शजर सा मुझे इक जिगर बख़्श मौला मोहब्बत भरा एक दिल मुझ को दे दे क़ना’अत-भरी इक नज़र बख़्श मौला झुके न कभी ज़ुल्म के सामने जो तू काँधों पे मेरे वो सर बख़्श मौला 'सदा' बेकसों का करे ख़ैर-मक़्दम मेरे घर को ऐसा तू दर बख़्श मौला