न इब्तिदा हूँ किसी की न इंतिहा हूँ मैं तअ'य्युनात की हद से गुज़र गया हूँ मैं जो ना-मुराद-ए-अज़ल है वो इल्तिजा हूँ मैं असर से दूर जो रहती है वो दुआ हूँ मैं तिरे जमाल का आईना बन गया हूँ मैं हज़ार पर्दों में छुप कर चमक रहा हूँ मैं इलाही किस की निगाहों से गिर गया हूँ मैं हर एक आँख को हसरत से तक रहा हूँ मैं तिरा करम तो ख़ुदा जाने क्या सितम होगा कि जब सितम पे तिरे जान दे रहा हूँ मैं न बाग़ से मुझे मतलब न बाग़ वालों से बहक के दश्त से गुलशन में आ गया हूँ मैं तुझे ख़बर भी है ओ मुड़ के देखने वाले तिरी निगाह पे क्या क्या लुटा रहा हूँ मैं मिरी नज़र से टपकती है आरज़ू दिल की सदा-ए-क़ल्ब हूँ ख़ामोश-ए-इल्तिजा हूँ मैं मदद का वक़्त है ऐ नाख़ुदा-ए-कश्ती-ए-दिल तजल्लियात की मौजों में घिर गया हूँ मैं हर एक आँख मुझे तक रही है हैरत से 'मुनीर' किस की निगाहों का आइना हूँ मैं