नैरंगी-ए-नशात-ए-तमन्ना अजीब है कुछ शाम से क़फ़स में उजाला अजीब है शरमा रहे हैं तार-ए-गरेबान-ओ-चाक-ए-दिल कुछ दिन से रंग-ए-लाला-ए-सहरा अजीब है हर ख़्वाब-ए-ए'तिबार शिकस्तों से चूर है दिल में मगर ग़ुरूर-ए-तमन्ना अजीब है सारा बदन है धूप में झुलसा हुआ मगर दिल पर जो पड़ रहा है वो साया अजीब है फेंके नहीं हैं आज तलक रेज़ा-हा-ए-दिल टूटे तअ'ल्लुक़ात का रिश्ता अजीब है जब तक नज़र न कीजिए यक क़तरा ख़ूँ है दिल लेकिन जो देखिए तो ये दुनिया अजीब है 'अख़्तर' ये तेरे पाँव के काँटे नए नहीं काँटों से खेलता हुआ छाला अजीब है