नए देस का रंग नया था धरती से आकाश मिला था दूर के दरियाओं का सोना हरे समुंदर में गिरता था चलती नदियाँ गाते नौके नोकों में इक शहर बसा था नौके ही में रैन-बसेरा नौके ही में दिन कटता था नौका ही बच्चों का झूला नौका ही पीरी का असा था मछली जाल में तड़प रही थी नौका लहरों में उलझा था हँसता पानी रोता पानी मुझ को आवाज़ें देता था तेरे ध्यान की कश्ती ले कर मैं ने दरिया पार किया था