नज़र का अपनी नज़रिया बदल के देख ज़रा पुरानी सोच से आगे निकल के देख ज़रा ख़ुदा का 'अक्स हर इक शख़्स में दिखेगा तुझे ख़ुदी के जाल से बाहर निकल के देख ज़रा तुझे हर आदमी तुझ से हक़ीर दिखता है तू अपने चश्मे का नंबर बदल के देख ज़रा मिरा मज़ाक़ उड़ाने से पहले मेरी तरह पहन के पाँव में ज़ंजीर चल के देख ज़रा तू सिर्फ़ 'अक़्ल का ही ऐ बशर ग़ुलाम न बन कभी तो दिल के भी कहने पे चल के देख ज़रा लगा चुका है बहुत इंक़लाब के ना'रे अब इर्द-गिर्द ही अपना बदल के देख ज़रा तुझे लगेगा तिरे दिल की तर्जुमानी है तू पढ़ के शे'र 'सदा' की ग़ज़ल के देख ज़रा