नज़र ने कर दिया ग़ाएब दिखाया दिल ने जो जल्वा बज़ाहिर है जो बीनाई हक़ीक़त में है वो पर्दा उसे ढूँडें कहाँ कोई नहीं जिस का निशाँ कोई हुजूम-ए-नूर है वो नूर का क्या नक़्श क्या चेहरा हुए बेहोश सब के सब हुआ जिन पर भी ज़ाहिर वो तो फिर जल्वा कोई उस का बयाँ करता तो क्या करता मकीन-ए-हर-मकाँ कहिये या कहिये ला-मकाँ उस को है हर घर में नहीं लेकिन किसी घर में समा सकता वही नज़रें वही नाज़िर वही ख़ुद हर नज़ारा है कि है कुल क़ुदरत-ए-क़ादिर करिश्मा उस की वहदत का 'सदा' सब मुनहसिर है देखने वाली निगाहों पर किसी को हाज़िर-ओ-नाज़िर किसी को है गुमाँ लगता