निगाह ख़ुद पे टिकी थी तो और क्या दिखता जो ख़ुद-नुमा था उसे किस लिए ख़ुदा दिखता दिखी न का'बे में वा'इज़ तुम्हें झलक उस की हमें तो बुत में भी है जल्वा-ए-ख़ुदा दिखता पड़ा है 'अक़्ल तुम्हारी पे मुनकिरो पर्दा तुम्हें हर एक करिश्मा है हादिसा दिखता हज़ार बार है चश्मा बदल के देख लिया हमें तो ज़र भी है यारो तुराब सा दिखता कोई है ढूँढ रहा कोह-ओ-दश्त में उस को किसी को दिल ही में जल्वा है तूर का दिखता तलब ख़ुदा से 'सदा' थी तलब ख़ुदा की न थी तलब ख़ुदा की जो होती तो जा-ब-जा दिखता