पल भर को जिस में चैन न आए छोड़ दो उस काशाने को गुलशन ही जब कि रास नहीं आबाद करो वीराने को हिज्र की रात थी इतनी लम्बी काटे से नाँ कटती थी ग़म की जोत जगाई मैं ने इस दिल के बहलाने को क्या क्या ने'मत बख़्शी है उस प्यारे ने ये मत पूछो दर्द दिया कुछ दाग़ दिए और अश्क दिए पी जाने को कोई तो ता'बीर बताए ख़्वाब इक मैं ने देखा है मस्जिद को सब रिंद चले और शैख़ चले मयख़ाने को आँधी और तूफ़ान भी इस को रोक सके न राहों में दूर से आया है परवाना शम्अ ही पर मिट जाने को ऊँची नीची तिरछी टेढ़ी सब राहें जो देख चुका कौन आ कर समझाएगा अब इस 'राजस' दीवाने को