चमन में गुल ने कहीं दा'वा-ए-जमाल किया By Ghazal << एक तमाशा ये भी जहाँ में क... जाने वाला जो कभी लौट के आ... >> चमन में गुल ने कहीं दा'वा-ए-जमाल किया जमाल-ए-यार ने मुँह उस का ख़ूब लाल किया बहार-ए-रफ़्ता फिरी अब तिरे तमाशे को चमन को युम्न क़दम ने तिरे निहाल किया रही थी दम की कशाकश गले पे कुछ बाक़ी वो तेग़-ए-यार ने झगड़ा है इंफ़िसाल किया Share on: