पत्थरों में आइना मौजूद है यानी मुझ में दूसरा मौजूद है ज़म्ज़मा-पैरा कोई तो है यहाँ सेहन-ए-गुलशन में हवा मौजूद है ख़्वाब हो कर रह गया अपने लिए जाग उठने की सज़ा मौजूद है इक समुंदर है दिल-ए-उश्शाक़ में जिस में हर मौज-ए-बला मौजूद है आसमानी घंटियों के शोर में उस बदन की हर सदा मौजूद है मैं किताब-ए-ख़ाक खोलूँ तो खुले क्या नहीं मौजूद क्या मौजूद है जन्नत-ए-अर्ज़ी बुलाती है तुम्हें आओ 'सरवत' रास्ता मौजूद है