पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही वहशत करेगा तुझ से वाक़िफ़ हूँ मिरी जाँ तू मोहब्बत करेगा मैं चला जाऊँगा दुनिया से सिकंदर की तरह अगली सदियों पे तिरा नाम हुकूमत करेगा पेश है दूसरे आलम में भी तन्हा रहना मैं ने सोचा था तू दुनिया से बग़ावत करेगा दिल तिरी राह-ए-अज़िय्यत से पलटने को है क्या तू अब भी न मिरा ख़्वाब हक़ीक़त करेगा तू मिरी मौत की तस्दीक़ नहीं कर सकता छुएगा तो मुझे और दिल मिरा हरकत करेगा वाहिमा सहरा-नवर्दी का मुदल्लल नहीं है कोई होगा मिरे दिल में तभी हिजरत करेगा वो जो 'आफ़ाक़' चराग़ों की लवें तोड़ता है अपना सूरज भी उसी हाथ पे बैअ'त करेगा