न पूछो कि 'क़ाएम' का क्या हाल है कुछ इक ढेर हड्डियों का या खाल है जो बैठे तो है रू-ए-क़ालीं का नक़्श खड़ा हो तो काग़ज़ की तिमसाल है खटकता है पहलू में यूँ हम-नशीं कहे तो ये दिल तीर की भाल है गिरफ़्तार है जो तिरी ज़ुल्फ़ का वो हर क़ैद से फ़ारिग़-उल-बाल है उठा रौंद डाले इक आलिम के दिल भला शोख़ ये भी कोई चाल है उलझता है जी शैख़ की रीश देख वो सच है मिस्ल बाल जंजाल है धड़कने का दिल पर है गाहे हुजूम गहे चश्म गिर्या की पामाल है ये गोया दर-ए-दौलत-ए-इश्क़ पर दिल ओ दीदा सामान घड़ियाल है ख़ुश आई है 'क़ाएम' यही गर ज़मीं तो फिर कह न मज़मूँ का क्या काल है